आज अपने गांव जा रहा हूं

आज अपने गांव जा रहा हूं

आज अपने गांव जा रहा हूं

लंबे समयांतराल के पश्चात अवकाश प्राप्त हुआ है। इस अल्प अवधि में कुछ दिन के लिए  स्वास्थ्य लाभ,  परिवार और मित्र लाभ की आकांक्षा के साथ

आज अपने गांव जा रहा हूं।
आज अपने शहर, अपने नगर जा रहा हूं।

अपने जन्मस्थान
प्रकृति के वरदान
वनों के मध्य स्थित 
अपने ललितपुर जा रहा हूं।

जहां अपने संस्कार
वर्षों पुराने बचपन के यार
उनकी मित्रता को नमस्कार और
 जीवन धर्म का सच्चा पुरस्कार लेने जा रहा हूं।

पापा से कोई चमत्कार, 
मां से आशीष अपार, 
भाई से स्वप्न साकार, 
दीदी से जीवन का आधार  और 
अपने आप से पुनः साक्षात्कार करने जा रहा हूं

लंबे समय के बाद आज अपने घर जा रहा हूं। 
आज अपने गांव जा रहा हूं।

आज अपने गांव जा रहा हूं।

अपने आप को ढूंढने जा रहा हूं।

जो मित्र खोया होगा 
उसको पुनः पाने जा रहा हूं।

जो संबंध रोया होगा
 उसको मनाने जा रहा हूं।

जो भाई सोया होगा
 उसको जगाने जा रहा हूं।

मैं अपने शहर ,अपने नगर ललितपुर जा रहा हूं।

आज अपने गांव जा रहा हूं।

आज अपने गांव जा रहा हूं

अपनी मिट्टी,
 उसकी सुगंध, 
जैसे जीवन की अद्भुत उमंग

हां मैं उसी मिट्टी को सूंघने जा रहा हूं, 

उसके कीचड़ में सनने जा रहा हूं, 

उस उमंग में लहराने जा रहा हूं।

जिस मिट्टी से बना हूं, 
उसी मिट्टी से मिलने जा रहा हूं।

आज अपने शहर,
 अपने नगर जा रहा हूं।

आज अपने गांव जा रहा हूं।

बेतवा मैया में तैरने जा रहा हूं।

गोविंद सागर बांध में कूदने जा रहा हूं।

शहजाद नदी में नहाने जा रहा हूं।

करकरावल जलप्रपात में खेलने जा रहा हूं।

इस भीषण गर्मी में पूरा शीतल होने जा रहा हूं।

मन मस्तिष्क मंदिर को हल्का करने जा रहा हूं।

आज अपने गांव जा रहा हूं।

आज अपने शहर, अपने नगर जा रहा हूं।

देवगढ़ में विष्णु के दशों अवतारों के दर्शन करने जा रहा हूं

बेतवा के किनारे गुफाओं में कुछ देर बैठने जा रहा हूं।

लुप्त होते बाजों, गिद्धों को वहां तलाशने जा रहा हूं।

मैं आज अपने शहर, अपने नगर  ललितपुर जा रहा हूं।

अपने दादा - दादी की,  अपने नाना - नानी की ,  
अपने पुरखों की , अपने पूर्वजों की
पुण्य पावन धरती अपने शहर,  
अपने नगर ललितपुर जा रहा हूं।

आज अपने गांव जा रहा हूं।

आज अपने गांव जा रहा हूं।
 
आज अपने गांव जा रहा हूं।

©विनय ॐ तिवारी

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