आज बसंत याद आ रहा है
Share
आज बसंत याद आ रहा है
शीत अपने चरम पर है। ठंड का कहर बरप रहा है। वायुमंडल शुष्क है। पछुआ की कनकनी कानों में खनखना रही है। उत्तर में हिमालय श्वेत हिम चादर से ढक चुका है। उस श्वेत चादर की लहरें पूरे उत्तर ,पूर्वी, मध्य भारत तक अपना असर दिखा रहीं हैं। पीर पंजाल से गंगा यमुना के मैदानी क्षेत्रों से नर्मदा और गोदावरी के पत्थरों तक कोहरे की धुंध छाई हुई है। सूर्य की ऊष्मा वायुमंडल की परतों में खो सी रही है। स्थलमंडल,वायुमंडल ,जलमंडल तीनों मंडल जाड़े में जड़ गए हैं। चारों तरफ छाई जड़ता में नया नवमंगल क्या है? ऋतुओं के देश में आज नया क्या है? जड़ता की इस ऋतु में आज अपना चेतन बसंत याद आ रहा है।

आज वो बसंत याद आ रहा है, जब सब कुछ नया लगता है। वो बसंत जब शीत की काली निर्जन रातों के छटने का समय आता है, पेड़ों के सुशोभित होने का समय आता है, फूलों के खिलने का समय आता है, प्रकृति के झूमने का समय आता है, वृक्षों में नव पल्लव आने का समय आता है, आम में बौरों के आने का समय आता है, पावन पवन के चलने का समय आता है , कोयल के गाने का समय आता है, सरसों के फूल से सराबोर पीला बसंत आता है। वो राग बसंत का समय होता है। उसमे बसने को जी करता है। वो बसंत जब पूरे भारतवर्ष की धरा नई होती है। जब वातावरण, परिवेश, खेत खलिहान से लेकर अंतर्मन तक पुराने कवच को उतार कर कुछ नया धारण करता है। वो बसंत, उस बसंत की वैशाखी, उस बसंत का गुड़ी पड़वा,उस बसंत का नवरेह, उस बसंत का विशु, उसका उगादी याद आ रहा है। भारतवर्ष का वह नववर्ष याद आ रहा है। तन में स्फूर्ति, मन में उल्लास और हृदय में चेतना को जगाने वाला बसंत याद आ रहा है। निराशा, निष्क्रियता, निरक्षरता को मारने वाला बसंत याद आ रहा है।
आज बसंत याद आ रहा है।
आज बसंत याद आ रहा है।
आज बसंत याद आ रहा है।