दीप और आत्म का दर्शन
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सूर्य जैसे चले गए थे। बहुत दूर। कहीं दूर-दक्षिण की ओर चले गए थे।
सूर्य जैसे चले गए थे। बहुत दूर। कहीं दूर-दक्षिण की ओर चले गए थे। एक एक दिन उनके बिना भारी गुजर रहा था। शिशिर की काली छाया में बहती शीत लहरों में सिर्फ सूर्य देव याद आ रहे थे। हेमंत की मध्यम और कड़क शिशिर की कपकपी रातों में हम निद्रालीन थे। हेमंत के स्नेह और शिशिर की कठोरता में जी रहे थे। पूरे भारतवर्ष का शीतकाल चल रहा था। शिशिर ऋतु सब कुछ ठंडा कर रही थी। हम कपड़ो की चादर से ढके हुए थे। पारा लुढ़कते लुढ़कते रसातल में बैठ चुका था। हम अपनी एकत्रित ऊर्जा से सूर्य का इंतजार कर रहे थे। सूर्य आयेंगे, हमें भरोसा था वो आयेंगे। वो उत्तरायण होंगे। वो हमारी ओर बढ़ेंगे। हम उनकी ओर देखेंगे। जब से शरद व्यतीत हुआ था तभी से एक बेचैनी होने लगी थी। शरद के जाने के बाद भारतीय जीवन में सूर्य-शून्यता सी आने लगती है और सूर्य नहीं तो ताप कहां और ताप नहीं तो वो शौर्य और वो वीरता कहां। सूर्य के दक्षिण गोलार्ध की यात्रा की पूरे छह माह की अवधि उनकी दक्षिण यात्रा से होने वाली दूरी की विवशता से परिपूर्ण थी। अपने आराध्या की दक्षिण की यात्रा से साधक को कष्ट होना ही है। अयोध्या के आराध्य भी जब दक्षिण की यात्रा पर निकले थे तो पूरी अयोध्या दुखी थी। उनके उत्तर वापसी की यात्रा पर देव दीप प्रज्ज्वलित करते हैं। सूर्यदेव के मकर में आगमन होने पर पूरी सृष्टि प्रफुल्लित होती है। अब सृष्टि जनक भगवान सूर्य उत्तरायण हो चुके हैं। उनका शौर्य भारत के भू भाग पर पुनः परिलक्षित हो रहा है। वो अनंत ऊर्जा के स्वामी हैं। वो अणु परमाणु के भीषण विलयन से उत्पन्न ऊर्जा का अनंत प्रसार हैं। जगत का हर कंपन उनके होने से हो रहा है। नवग्रहों की ऊर्जा की ध्वनि भगवान सूर्य ही हैं। सूर्य देव पृथ्वी समस्त अन्य सभी ग्रहों, उपग्रहों,उल्काओं,पिंडो सभी को क्रियाशील करते हैं। सूर्य की ऊर्जा अर्थात क्रियाशीलता, अर्थात गतिशीलता, अर्थात अनवरत असीमित चलने की शक्ति, अर्थात बिना रुके, बिना थके सतत कार्य करने की भक्ति। सूर्यदेव जहां नहीं हैं वहां शून्यता है। जहां वो नहीं हैं वहां जड़ता है। सूर्य गति का साधन है। वो हमारे गोलार्ध में प्रवेश कर चुके हैं। वो मकर में आ चुके हैं। धनु से मकर में प्रवेश कर चुके हैं। उनकी इस यात्रा का विशेष संक्रमण हो चुका है। वो दक्षिण से उत्तर की यात्रा शुरू कर चुके हैं। हमारे देश, हमारे धाम की ओर आ रहे हैं। वो पारा जो सबसे गरिष्ठ है। वो पारा अब सूर्य के ताप से चढ़ने लगा है। पारा ऊपर उठने लगा है। तुषार की चादर पूरे उत्तर भारत से हटने लगी है।। पूरी तरह हिम से आच्छादित हिमालय सूर्यदेव की उपस्थिति से सुनहरे हो गए हैं। गंगा यमुना के मैदानी क्षेत्रों में भीषण ठंडी हाड़ मांस कंपाने वाली हिमशुष्क वायु समाप्त होने लगी है। रेगिस्तान की रेत, पंजाब का पंज,वायु की ठंडी परतों में भीगा सिंध का शीर्ष भी अब शीत से मुक्त हो रहा है। विंध्य की श्रृंखलाएं मां गंगा के ठंडे जल को विंध्याचल में स्पर्श कर अपने ताप मान को शून्य से ऊपर ले जा रहीं हैं। सूर्यदेव का धनु से मकर का अद्भुत संक्रमण भारतीय भूभाग पर बसंत की अप्रतिम काया प्रस्तुत कर रहा है।
माघ मास की पावन पूर्णिमा पर ऋतुराज बसंत हम सभी के ज्ञान की परिधि को अनंत तक पहुंचाए। सोचने की क्षमता को सुदृण करें। विवेक के उच्चतम स्तर तक पहुंचाए और हमें संवदेनशील बनाए रखें। बसंत की ऊष्मा से हम सर्वदा सुचारू रहें। बसंत हमारी जड़ता को समाप्त कर हमारे जीवन प्रवाह का अनंत प्रसार करते रहें।
सप्रेम सादर