गणित: सिर्फ एक विषय नहीं, एक जीवन शैली
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National Mathematics Day
कल राष्ट्रीय गणित दिवस था। गणित के साथ कैसे सम्बन्ध रहे हैं इस पर सोचने के लिए उपयुक्त दिवस था। मन मस्तिष्क सोचता रहा कि गणित के कितना करीब रहा हूं। इतना करीब रहा हूं की गणित से ही प्रेम करने लगा था। मेरा और गणित का प्रेम निश्चल था। उसके सवालों और उसकी समस्याओं को हल करके मुझे सुख की अनुभूति होती थी। एक ही नहीं कई तरीकों से उसकी समस्याओं को हल करता था। गणित ने सवाल और समस्याएं हल करने की ये जो इच्छाशक्ति दी थी आज तक उसी से जीवन की समस्याओं को हल करने का बल मिलता रहता है। गणित की उलझती काया को सुलझाते सुलझाते जीवन ही सुलझा सा लगने लगा था। यूपीएससी की तैयारी तक गणित मेरे साथ रही। आज नहीं हैं। स्पष्ट रूप से नहीं हैं। पर अन्तःकरण में है। आज गणित से दूर हूं पर दूर होते हुए भी दुनिया की हर कहानी में अवकलन समाकलन ढूंढता रहता हूं। हर किसी विषयवस्तु का अवकलज निकालता हूं और फिर उन छोटे छोटे हिस्सों को समाकलित करते हुए फिर उस विषयवस्तु की और लौटता हूं। गणित ने ऐसे ही दुनिया देखना सीखा दिया। मेरी और गणित की प्रेम कहानी पर कुछ दिन पहले कुछ लिखा था। जो लिखा था वो एक प्रेम कहानी है। एक विषय और एक व्यक्ति की। व्यक्ति के विषय को ढूंढने की। उससे कुछ सीखने की। सीखते सीखते उस प्रेम पर न्योछावर होने की कल्पना करने की। फिर जीवन की अन्य जद्दोजहदों में अपने प्रेम को खोने और रह रह कर उसे याद करते रहने की। हर कण, हर क्षण में अपने प्रेम गणित को ढूंढते रहने की।